तू भी ख्वा-म-खाह बढ़ रही हैं ऐ धूप गिला शिकवा << अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग... ग़म है न अब ख़ुशी है न उम... >> तू भी ख्वा-म-खाह बढ़ रही हैं ऐ धूपइस शहर में पिघलने वाले दिल ही नहीं रहे! Share on: